बाद मुद्दत के मैं तुम्हारे शहर लौटा तुमसे मिलने,
सोचा था कुछ अपनी कहूँगा, कुछ तुम्हारी सुनूँगा,
वो सारी अनकही बातें जिन्हें अबतक छिपा रखी होंगी।
कबसे गले नहीं लगा, लगकर रोया नहीं तुमसे।
वही सवाल फिर करता कि कैसे हो?
इस उम्मीद में कि इस बार सच कहोगे।
मैं थोड़ा बदला हूँ पर तुम भी तो कितना बदले हो।
झुर्रियां आना शुरू हो गयीं हैं और बाल भी रंगने लगे हो।
शायद भूल गया था कि तुम नौकरीशुदा थे अब शादीशुदा भी हो।
वक्त कहाँ मिलता होगा तुम्हें यही समझाकर मैं लौट गया।
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