Sunday, August 21, 2016

रिश्ते (भाग-२)

रिश्तों को भी खाद - पानी 
और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है
फूलने- फलने के लिए, 
अन्यथा गुब्बारे के हवा की तरह 
धीरे- धीरे रिश्तों की भी हवा निकल जाती है

कुछ रिश्ते वृक्षों की तरह 
शनैः-शनैः सूखते हैं,
कुछ पौधों की तरह अचानक 
मृतप्राय हो जाते हैं 

रिश्ते दादी- माँ के घुटने के 
दर्द की तरह भी होते हैं 
जो पीड़ा देते हैं फिर भी 
उन्हें झेलने की 
उनके साथ जीने की आदत 
पड़ ही जाती है

अब वास्तव में ये रिश्ते मुझे 
आतंकित करते हैं 

सुना है जूठा खाने-खिलाने से 
प्रेम बढ़ता है
दादी माँ ने बचपन में 
मुझे बहुत जूठा खिलाया था
किन्तु मैं कह सकता हूँ 
कि प्यार बढ़ाने के लिए 
बस प्यार होना चाहिए। 
कृतिम प्रेम अधिक टिकाऊ नहीं होता। 

बालमन शब्दों के मायाजाल को 
नहीं समझता। 
कूटनीति और छिपे स्वार्थ 
नहीं समझता। 
परंतु वह 
सब कुछ समझ सकता है 
जो वयस्क मन समझना नहीं चाहते। 

मुझे आशा है 
विश्वास है 
इन सूखे पेड़ों पर, 
फिर नए पत्ते पनपेंगे 
फिर से कोई नयी शाखा निकलेगी 


[भतीजी "धान्या" को समर्पित]

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