जिसे माज़ी१ का पता
ना जमान ऐ हाल२ का होश
ना आकबत३ की खबर
ना भूत, ना भविष्य
ना वर्तमान हूँ.
मैं कौन हूँ?
जिस खुदा को ना देखा कभी
ना सुना, ना महसूस किया
कहते हैं उसी का
इक अक्स हूँ.
मैं कौन हूँ?
जहां उठती है इक हूक सी
हर रोज
मुफ्त बीमारियों की दूकान या
गालिबन४ अन्दाखता५ हूँ.
मैं कौन हूँ?
जीने की ख्वाहिश है जिसे
जाते हुए तुर्बत६ में भी
किस फ़िक्र में गुजर गयी
कमबख्त ज़िन्दगी
सोजिश७ या हवस हूँ.
मैं कौन हूँ?
१ इतिहास, २ वर्तमान, ३ भविष्य, ४ बहुत संभव है कि, ५ त्यक्त, ६ कब्र, ७ मानसिक कष्ट
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
No comments:
Post a Comment