लोग तो वो देखते हैं
जो मैं दिखाता हू.
मेरे दिल की बात
कोई कैसे समझे?
और मैं कैसे बयान करू?
कहा से लाऊ वो अल्फाज
जो मापकार बता दे
मेरे जजबात, मेरा दर्द.
वैसे न तो किसी की
दिलचस्पी ही हैं इसमे
न मैं बताना चाहता हू
कि मेरा गम कितना हैं
कि कितने परत दर परत
आंसू छुपे हुये हैं
लेकीन जब कुछ बातें
नासूर बनके चुभती हैं तो
सैलाब सा बह जाता हैं
लाख कोशिशो के बावजूद
और लोगो को हंसने का
एक और बहाना मिल जाता हैं.
सच कहूं तो
इस एक जिंदगी में
कई जिंदगानियां देख भी ली
और जी भी ली.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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