Monday, December 21, 2009

लव आजकल

अब लोग मुहब्बत नहीं करते
बस प्यार करते हैं
गिफ्ट देकर
'आई लव यू' बोलकर
आज का प्यार
बाजारू हो गया है
जिस्म की भूख मिटाने की
एक जरूरत भर रह गया है
मुहब्बत महमूज़१ हो गया है.

ना अब ताजमहल बनते हैं
ना लैला मजनू पैदा होते हैं
ना महबूब में अदाएं रहीं
ना बांकपन और शर्मो हया
ना दीवानगी बची
ना गजलें लिखी जाती हैं
ना उसके कद्रदान रहे
ना वो जज़्बात रहे

हुस्न अब नंगा घूमता है
आवारा सड़कों पर.

ना वो रूमानियत रही
ना वो जोशे जूनून
ना परस्तिश की तमन्ना होती है
ना फ़ना होने की कूव्वत
ना किसी परीज़ादा की निगाहों में
वो कशिश रही
ना उसकी बातों में नशा
अब कौन मर मिटने की बात करे?
सिर्फ 'आई मिस यू' से ही
काम चल जाता है
इश्क के नाम पर अगर
कुछ बचा है तो बस
छिछोरापन और सेक्स.

हम इश्क करें तो किससे?
औबाश२ निगाहें
हर चीज़ की कीमत लगा बैठती हैं.

१ दूषित २ लुच्ची

Wednesday, December 16, 2009

मर्म

लोग तो वो देखते हैं
जो मैं दिखाता हू.
मेरे दिल की बात
कोई कैसे समझे?
और मैं कैसे बयान करू?
कहा से लाऊ वो अल्फाज
जो मापकार बता दे
मेरे जजबात, मेरा दर्द.

वैसे न तो किसी की
दिलचस्पी ही हैं इसमे
न मैं बताना चाहता हू
कि मेरा गम कितना हैं
कि कितने परत दर परत
आंसू छुपे हुये हैं

लेकीन जब कुछ बातें
नासूर बनके चुभती हैं तो
सैलाब सा बह जाता हैं
लाख कोशिशो के बावजूद
और लोगो को हंसने का
एक और बहाना मिल जाता हैं.

सच कहूं तो
इस एक जिंदगी में
कई जिंदगानियां देख भी ली
और जी भी ली.