जो भी माँगा मिला नहीं
फिर भी मुझे गिला नहीं
पता नहीं कब दिन गया
एक एक कर सब छिन गया
मैंने रात भर रोया है
ज़िन्दगी में बस खोया है.
तलाश थी थोडी ख़ुशी की
इंतज़ार था होगी सुबह
जिसे भी पुकारा वो सुना नहीं
क्या पता क्या थी वजह
मुझे राह में पतझड़ मिले
हर मोड़ पर सहरा मिला
कभी मरहले खो से गए
कभी रास्ते हुए गुमशुदा
मैं तरस गया हर बूँद को
नाराज़ था शायद खुदा.
लख्ते- जिगर कट कट गए
खून सारा पानी हुआ
गैरत क्या शर्मो हया
खूब रंग लायी मेरी दुआ
अब खौफ किस बात से
हंस ले जिसे हँसना है
बन गया हूँ तमाशागर
आकर तेरी दुनिया में
परवरदिगार दे ऐसी सजा
ना कोई मर सके ना जी सके.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago